"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति ११५:
{{center|(छठा प्रभाव)}}
{{center|(सवैया)}}
 
'''हाथी न साथी न घोरे न चेरे न, गाउँ न ठाउँ को नाउँ विलैहै ।'''
 
'''तात न मात न पुत्र न मित्र, न वित्त न अंगऊ संग न रैहै ।'''
'''केशव कामको 'राम' बिसारत और निकाम न कामहिं ऐहै।'''
 
'''चेतुरे चेतु अजौ चितु अंतर अंतकलोक अकेलोहि जैहै|56||'''