"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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'''हाथी न साथी न घोरे न चेरे न, गाउँ न ठाउँ को नाउँ विलैहै ।'''
'''तात न मात न पुत्र न मित्र, न वित्त न अंगऊ संग न रैहै ।'''
'''केशव कामको 'राम' बिसारत और निकाम न कामहिं ऐहै।'''
'''चेतुरे चेतु अजौ चितु अंतर अंतकलोक अकेलोहि जैहै|56||'''
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