"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति १३१:
 
'''व्याख्या :''' तेरे साथी ये हाथी-घोडे और नौकर-चाकर नहीं है । न गाँव और घर ही तेरा साथ देगे, इनका तो नाम तक लुप्त हो जायगा। पिता, माता, पुत्र मित्र और धन मे से कोई भी तेरे साथ न रहेगा। 'केशवदास' कहते हैं कि तू काम आनेवाले राम को भूल रहा है और तो सब व्यर्थ है, तेरे काम न आवेंगे । अब भी मन मे सावधान हो जा, क्योकि यमलोक को तो तुझे अकेला ही जाना पडेगा
 
'''विशेष १.''' भक्ति को पद है संसार में सब कुछ व्यर्थ है क्षीणकता का प्रभाव डाला है क्षीणकता के साथ-साथ ईश्वर की महामाया पर प्रभाव डाला है मृत्यु अंतिम सत्य है
'''२''' मार्मिक पद है