"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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{{center|(गणेश जी का दान वर्णन)}}
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'''बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारै सब काल,'''
'''कठिन कराल त्यो अकाल दीह दुख को।'''
'''विपति हरत हठि पद्मिनी के पति सम,'''
'''पङ्क ज्यों पताल पेलि पठवै कलुष को।'''
'''दूर के कलङ्क अङ्क भव सीस ससि सम,'''
'''राखत है 'केशोदास' दास के वपुष को।'''
'''साकरे की सांकरन सनमुख होत तोरै,'''
'''दसमुख मुख जावै, गजमुख मुख को'''
'''संदर्भ :''' प्रस्तुत पद्यांश केशवदास द्वारा रचित वंदना के शीर्षक गणेश वंदना से उत्कृष्ट है
'''प्रसंग :''' यहां पर कवि केशवदास ने गणेश जी की वंदना की है
'''व्याख्या :'''
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