"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १६०:
'''प्रसंग :''' यहां पर कवि केशवदास ने गणेश जी की वंदना की है
 
'''व्याख्या :''' कवि कहता है कि जैसे पालक कमल की डाल को किसी भी समय आसानी से तोड़ डालता है उसी प्रकार गणेश असमय में आए विकराल दुख को भी दूर कर देते हैं जैसे कमल के पत्ते पानी में फैले कीचड़ को नीचे भेज देते हैं और स्वयं स्वच्छ होकर ऊपर रहते हैं उसी प्रकार गणेश हर विपत्ति को दूर कर देते हैं जिस प्रकार चंद्रमा को निष्कलंक कर शिव जी ने अपने शीश पर धारण किया उसी प्रकार गणेश जी अपने दाश को कलंक रहित कर पवित्र कर देते हैं गणेश जी वंदना से अभिनेता स्कोर मुक्त कर देते हैं रावण भी गणेश जी के मुख की तरफ देखकर अपनी बाधाओं को दूर करने की आशा करता था
'''व्याख्या :'''