"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर
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'''बानी जगरानी की उदारता बखानी जाय,'''
'''ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।'''
'''देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तप वृद्ध,''''
'''कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई ।'''
'''भावी, भूत, वर्तमान, जगत बखानत है,'''
'''केशौदास क्यों हूँ न बखानी काहू पैगई।'''
'''वर्णे पति चारिमुख, पूत वर्णे पॉच मुख,'''
'''नाती वर्णे षटमुख, तदपि नई नई'''
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