"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/केशवदास": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १८९:
'''वर्णे पति चारिमुख, पूत वर्णे पॉच मुख,'''
 
'''नाती वर्णे षटमुख, तदपि नई नई||'''
 
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिबद्ध कवि केशवदास द्वारा रचित कविप्रिया के छठा प्रभाव के गिरा का दान वर्णन के कवित्त से संकलित किया गया है
 
'''प्रसंग :''' इस पद के माध्यम से केशवदास मां सरस्वती की वंदना करते हैं
 
'''व्याख्या :''' जगत की स्वामिनी श्री सरस्वती जी की उदारता का जो वर्णन कर सके, ऐसी उदार बुद्धि किसकी हुई है ? बडे-बडे प्रसिद्ध देवता, सिद्ध लोग, तथा तपोबद्ध ऋषिराज उनकी उदारता का वर्णन करते करते हार गये, परन्तु कोई भी वर्णन न कर सका । भावी, भूत, वर्तमान जगत सभी ने उनकी उदारता का वर्णन करने की चेष्टा की परन्तु किसी से भी वर्णन करते न बना । उस उदारता का वर्णन उनके पति ब्रह्माजी चार मुख से करते है, पुत्र महादेव जी पाँच मुख से करते है और नाती ( सोमकार्तिकेय ) छ मुख से करते है, परन्तु फिर भी दिन-दिन नई ही बनी रहती है