"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/बिहारी": अवतरणों में अंतर

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'''जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।'''
 
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है
'''संदर्भ :'''
 
'''प्रसंग :''' इस पद के माध्यम से बिहारी जी राधा आग्रह करते हैं
 
'''व्याख्या :''' राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते है। दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया पड़ने से कृष्ण हरित (प्रसन्न) हो उठते हैं।
 
इस दोहे में बिहारी लाल जी ने राधा जी से प्रार्थना की है कि मेरी जिंदगी भी सांसारिक बाधाएं हैं उन्हें दूर कर मुझे सुख प्रदान करो | वे कहते हैं राधा जी ऐसी चमत्कारिक स्त्री है जिसके बदन की एक झलक पढ़ने से श्री कृष्ण जी के जीवन में सभी खुशियां आ गई| वे प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे राधा जी मेरी भी सभी दुख दूर कर कष्टों को हर लो