"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/बिहारी": अवतरणों में अंतर
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छो अनिरुद्ध कुमार ने रीतिकाल कविता प्रथम वर्ष/बिहारी लाल पृष्ठ हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/बिहारी पर स्थानांतरित किया: मूल पुस्तक के अनुरूप |
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'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है
'''प्रसंग :''' इस पद के माध्यम से
'''व्याख्या :''' इस छंद में एक वियोगिनी नायिका अपनी सखी से कहती है कि जब जब मैं अपने प्रियतम को याद करती हूं तो तब तब मैं अपनी सुधि खो जाती हूं उनकी आंखों के ध्यान में मेरे हृदय रूपी आंखें लगी रह जाती हैं और मुझे नींद नहीं आती
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