"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/बिहारी": अवतरणों में अंतर
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'''३''' अपार सौंदर्य का वर्णन किया गया है
'''दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।'''
'''परति गाँठि दुरजन हिये, दई नई यह रीति॥'''
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिसिद्ध कवि बिहारी लाल द्वारा रचित बिहारी सत्साई से लिया गया है
'''प्रसंग :''' तिवारी ने इस पत्र के माध्यम से समाज की कुरीतियों का वर्णन किया है
'''व्याख्या :''' बिहारी जी कहते हैं कि जब नायक और नायिका के नेत्र आपस में उलझते हैं अर्थात मिलते हैं तो इसका परिणाम यही होता है कि उनके परिवार टूट जाते हैं अर्थात ऐसे नायक नायिका के प्रेम को उनके परिवार स्वीकार नहीं करते हैं लेकिन विचित्र बात यह है कि वे लोग जुड़ जाते हैं जो चित चालक होते हैं तीसरे ह्रदय चतुर होते हैं लेकिन दुर्जन लोग जो प्रेम को नहीं समझते हैं ऐसे लोगों के ह्रदय में गांठ पड़ जाती है ऐसे चतुर लोगों को मिलते हुए देखकर उन्हें दुख होता है लेकिन यह विधाता की नई रीति है कि काम कहीं और होता है उसका प्रभाव कहीं और हो रहा होता है
एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि जैसे आंखों से आंखें मिलती हैं परिवार टूट जाते हैं और दुर्जनों के हृदय में एक गांव सी पड़ जाती है इसलिए इन आंखों का मिलन थी एक विलक्षण ही है
'''विशेष १.''' असंगति अलंकार का प्रयोग हुआ है
'''२.''' भाषा की समाज शक्ति का प्रयोग किया है
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