"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''टारैं टरैं नहीं तारे कहूँ सु लगे मनमोहन-मोह के तारे।।'''
 
'''संदर्भ :'''