"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ३४:
 
'''विशेष्य-'''दोहा छंद ,
 
 
'''३''' '''जो रहीम दीपक दसा,तिय राखत पट ओट।'''
 
'''समय परे ते होत है,याही पट की चोट।।'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' प्रस्तुत दोहे के माध्यम से कवि ने हमें यह बताने का प्रयत्न किया है कि काम पड़ने पर जिस को हम संभाल कर रखते हैं बाद में उसी को किस प्रकार हटा देते हैं।
 
 
 
'''व्याख्या-''' रहीमदास जी ने हमें इस दोहे के माध्यम से हमें यह बताया है कि जब दीपक की आवश्यकता होती है तो
जो औरत उसे हवा का झोंका आने पर अपने पल्लू से ढक कर बुझने से बचा लेती है बाद में अर्थात सूर्य के निकलने पर वही औरत उसे अपने पल्लू की चोट मारकर उसे बुझा देती है।
 
 
'''विशेष्य-'''