'''प्रसंग :''' घनानंद द्वारा उनकी प्रेमिका सुजान के सौंदर्य का वर्णन किया गया है
'''व्याख्या :१.''' घनानंद कवि कहते हैं कि उनकी प्रियतम सुजान का रूप तो एक खजाना है अर्थात सुजान एक अनुपम सुंदरी है जब मैं उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखता हूं तो मैं अपनी आंखों को वहां से हटा नहीं पाता मेरी दृष्टि उसको देखते देखते थक जाती है परंतु मेरी आंखें उसे देखना बंद नहीं करना चाहती अर्थात घनानंद ओशोको जानसुजान से प्यार हो गया है वे समाज की मान मर्यादा को भी भूल गईगए है घनानंद जैसे ही अपने पलक ऊपर को उठाते हैं तो उनके सामने सुजान के ही दर्शन मिलते हैं अंत में वे कहते हैं कि मेरे पलक रूपी कपाट उसकी सुधरे को देखते ही रहना चाहते हैं वे हटाने से भी नहीं हटते हैं इस प्रकार यहां पर सुजान की अत्याधिक आसक्ति के दर्शन होते हैं