"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''टारैं टरैं नहीं तारे कहूँ सु लगे मनमोहन-मोह के तारे।।'''
 
 
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद द्वारा रचित सुजानहित से संकलित किया गया है
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'''या मन की जु दसा घनआनंद जीव की जीवनि जान ही जानै।।'''
 
 
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद द्वारा रचित सुजानहित से संकलित किया गया है