"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''प्रसंग :''' इस छंद के माध्यम से घनानंद ने प्रेम की उच्च आदर्श को बताने का प्रयास किया है
 
'''व्याख्या :''' इस छंद के माध्यम से कवि घनानंद कहते हैं कि जल से बिछुड़ कर मछली व्याकुल हो जाती है और अपने प्राण त्याग देती है| परंतु मेरा दुख उसके भी समान नहीं है क्योंकि वह प्रेम में निराश होकर कायरों की तरह प्राण त्याग देती है और उसके मरने का कलंक उसके प्रेमी पर लगता है उसने विरह में जीवन कहां जिया, वह तो प्रेम की रीति को पहचान ही नहीं पाई जिसमें वियोग में तिल तिल जलकर भी प्रिय स्मृति में जीवन जीकर विरह के क्षणों को प्रिय समिति के साथ व्यतीत किया है विरह के भाव को कैसे समझ सकती है घनानंद कवि कहती हैं कि मैं सुजान के विरह में निरंतर व्याकुल रहता हूं मेरी इस विरह की पीड़ा को मेरी जीवन प्राण सुजान ही समझ सकती है प्रेम की इस रीति को विरह वेदना के दुख को मछली या जड़ प्रेमी क्या समझ पाए
 
'''विशेष १.''' घनानंद का प्रेम आज के लिए आदर्श है
 
'''२.''' यथाक्रम है प्रीति की रीति है