"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ५७:
 
 
'''४''' '''पावस देखखदेखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।'''
 
'''अब दादुर वक्त भए, हमको पूछे कौन।।'''
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'''प्रसंग-''' इस पद के माध्यम से रहीम दास जी एक समझदार व्यक्ति के कर्तव्य को समझाते हैं`
'''प्रसंग-'''
 
 
पंक्ति ७५:
 
* मेंढक जैसे लोग महान बने फिर रहे हैं
 
'''५''' '''प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब काउ निबहत नाहि'''
 
'''रहिमन’ मैन-तुरंग चह़ि, चलिबो पावक माहि'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' इस पद के माध्यम से रहिमदास प्रेम के मार्ग का ज्ञान कराते हैं
 
 
'''व्याख्या-''' रहिमदास कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अत्यंत कठिन है सभी उसका निर्वाह नहीं कर सकते प्रेम के मार्ग पर निर्वाह करना कठिन वैसा ही है जैसे मॉम के घोड़े पर बैठकर अग्नि में चलना क्योंकि प्रेम मार्ग में अनेक कठिनाइयां आती हैं
 
 
'''विशेष्य-'''
 
 
 
'''६''' '''यह ‘रहीम’ निज संग लै, जनमत जगत् न कोय ।'''
 
'''बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय ॥'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' रहीम दास कहते हैं कि कोई व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान या सर्वश्रेष्ठ पैदा नहीं होता है
 
 
'''व्याख्या-''' रहिमदास कहते हैं कि बैर, प्रीति, अभ्यास और यश यह समस्त चीजें व्यक्ति जन्म से साथ लेकर पैदा नहीं होता है सभी तो अभ्यास, व्यवहार, साधना और अच्छे अचार के परिणाम स्वरूप ही प्राप्त होती है
 
 
'''विशेष्य-'''