"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १११:
 
'''विशेष्य-'''
 
 
'''७''' '''यह ‘रहीम’ माने नहीं , दिल से नवा न होय ।'''
 
'''चीता, चोर, कमान के, नवे ते अवगुन होय ॥'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' रहीम दास तीन वस्तु (चीते, चोर, कमान) के माध्यम से उनके महत्व को समझाने ने का प्रयास करते हैं |इनका चलना कभी भी व्यर्थ नहीं जाता
 
 
 
'''व्याख्या-''' चीते का, चोर का और कमान का झुकना अनर्थ से खाली नहीं होता है । मन नहीं कहता कि इनका झुकना सच्चा होता है । चीता हमला करने के लिए झुककर कूदता है । चोर मीठा वचन बोलता है, तो विश्वासघात करने के लिए । कमान (धनुष) झुकने पर ही तीर चलाती है
 
 
'''विशेष्य-'''
 
 
'''८''' '''रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।'''
 
'''सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि॥'''