"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''व्याख्या :''' कविवर घनानंद कहते हैं कि हे प्रिय सुजान! मेरे साथ जो तुम अनीति का व्यवहार कर रही हो वह उचित नहीं है तुम मुझसे पीछा छुड़ाने वाली मत बनो मेरे साथ ऐसे निष्ठुरता का व्यवहार कर तुम अनीति क्यों कर रहे हो? मेरे प्राणरूपी रास्तागीर को केवल तुम्हारे विश्वास का सहारा है और उसी की आशा में अब तक जिंदा है तुम तो आनंदरूपी घन हो जो जीवन का प्रदाता है| हे देव! मोही होकर भी तुम मुझे अपने दर्शनों के लिए इस तरह क्यों तड़पा रहे हो अर्थात मुझे शीघ्र ही अपने दर्शन दे दो
 
'''विशेष १.'''
 
'''बंक बिसाल रंगीले रसाल छबीले कटाक्ष कलानि मैं पंडित|'''
 
'''साँवल सेत निकाई-निकेत हियौं हरि लेत है आरस मंडित|'''
'''बेधि के प्रान कर फिलिम दान सुजान खरे भरे नेह अखंडित|'''
'''आनंद आसव घूमरे नैंन मनोज के चोजनि ओज प्रचंडित|'''