"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''साँवल सेत निकाई-निकेत हियौं हरि लेत है आरस मंडित|'''
 
'''बेधि के प्रान कर फिलिम दान सुजान खरे भरे नेह अखंडित|'''
 
'''आनंद आसव घूमरे नैंन मनोज के चोजनि ओज प्रचंडित|'''