"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति ७३:
'''साँवल सेत निकाई-निकेत हियौं हरि लेत है आरस मंडित|'''
'''बेधि के प्रान कर फिलिम दान सुजान खरे भरे नेह अखंडित|'''
'''आनंद आसव घूमरे नैंन मनोज के चोजनि ओज प्रचंडित|'''
|