"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''व्याख्या :''' नायक कहता है हे सुंदरी मैं तेरी इस छवि पर बलिहारी जाता हूं तनिक अपने गुलाल लगे मुख्य की छवि दर्पण में तो देख | तुम्हारे गोरे मुख पर गुलाल की लाली कैसी फब रही है | गुलाल की लालिमा ने गोरे रंग में मिलकर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर दिया है | इस गोरे और लाल रंग के मिश्रण से जो छवि उत्पन्न हुई है उसे देख कर ऐसा लगता है मानो पूर्णिमा का चंद्र प्रातः काल के उदय होते सूर्य की लालिमा धारण कर आकाश में आया हो | सूर्य और चंद्र के इस अद्भुत मिलन से प्रकृति में एक अद्भुत दृश्य उपस्थित हो गया है साधारणतयः कमल दिन में सूर्य के उदित होने पर और कुमुदिनी रात्रि के समय चंद्रमा की चांदनी में लिखते हैं, परंतु तुम्हारे इस अद्भुत रूप के कारण जो सूर्य चंद्र का संगम हुआ है, उसके फलस्वरूप कमल और कुमुदिनी दोनों साथ -साथ लिख रहे हैं | तुम्हारे इस रूप लावण्य की शोभा अमुपम है | तुम्हारी सुंदरता ऐसी हो उठी है की सौदों के हृदय में है ईर्ष्या की आग प्रतिप्त हो उठी है | ऐसा लगता है मानो तुमने गुलाल तो लगाया है साथ ही होलिका दहन के लिए आग भी लगाई है और इस प्रकार होली का उत्सव पूरे समारोह के साथ मनाया है |
 
'''विशेष १.'''
 
 
'''पहिले अपनाय सुजान सनेह सों क्यों फिरि तेहिकै तोरियै जू.'''
 
'''निरधार अधार है झार मंझार दई, गहि बाँह न बोरिये जू .'''
 
'''‘घनआनन्द’ अपने चातक कों गुन बाँधिकै मोह न छोरियै जू .'''
 
'''रसप्याय कै ज्याय,बढाए कै प्यास,बिसास मैं यों बिस धोरियै जू .'''