"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर
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'''२.''' उदात प्रेम है (उच्च कोटि का प्रेम)
'''आसहि-अकास मधिं अवधि गुनै बढ़ाय । '''
'''चोपनि चढ़ाय दीनौं की नौं खेल सो यहै ।'''
'''निपट कठोर एहो ऐंचत न आप ओर,'''
'''लाडिले सुजान सों दुहेली दसा को कहै ।। '''
'''अचिरजमई मोहि घनआनद यौं,'''
'''हाथ साथ लाग्यौ पै समीप न कहूं'''
'''विरह-समीर कि झकोरनि अधीर,'''
'''नेह, नीर भीज्यौं जीव तऊ गुडी लौं उडयौं रहै ।।49||
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