"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति १७०:
'''संदर्भ :''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि घनानंद द्वारा रचित सुजानहित से संकलित किया गया
'''प्रसंग :''' इस कविता में कवि ने पतंग का रूपक बांधकर यह बताया है की सुजान ने पहले तो कवि को प्रेम के मार्ग में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया अपने आचरण से उसके मन में आशा बधाई, पर फिर अचानक उसके प्रति निष्ठुर हो उदासीन हो गई है और उसकी उदासीनता के कारण कवि की दशा अत्यंत दयनीय हो उठी है
'''व्याख्या :'' उस निष्ठुर सुजान ने पतंग उड़ाने जैसा निष्ठुर खेल मेरे साथ खेला है | पहले तो मेरे मन को आशा मैं बांधा, आश्वासन दिया, मिलने की अवधि निश्चित की और मेरा मन आशा की ऊंचाइयों में उड़ने लगा | मुझे सारा संसार तुच्छ लगने लगा | उत्साह, उमंग, और
|