"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १७२:
'''प्रसंग :''' इस कविता में कवि ने पतंग का रूपक बांधकर यह बताया है की सुजान ने पहले तो कवि को प्रेम के मार्ग में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया अपने आचरण से उसके मन में आशा बधाई, पर फिर अचानक उसके प्रति निष्ठुर हो उदासीन हो गई है और उसकी उदासीनता के कारण कवि की दशा अत्यंत दयनीय हो उठी है
 
'''व्याख्या :'' उस निष्ठुर सुजान ने पतंग उड़ाने जैसा निष्ठुर खेल मेरे साथ खेला है | पहले तो मेरे मन को आशा मैं बांधा, आश्वासन दिया, मिलने की अवधि निश्चित की और मेरा मन आशा की ऊंचाइयों में उड़ने लगा | मुझे सारा संसार तुच्छ लगने लगा | उत्साह, उमंग, और प्रेमातिरेक के कारण मैं बहुत आशावान और प्रसन्न था | पर अब उसने निष्ठा पूर्वक आचरण कर मेरी सारी आशाओं को धूल में मिला द लिया है| उसके लिए यह कीड़ा भले ही हो, पर इससे मेरे प्राण तो संकट में पड़ गए हैं | उसका यह मजाक पड़ा कठोर है | सुजान ने प्रेम की डोर ढीली छोडी, मिलन की अवधि बढ़ती गई,