"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/घनानंद": अवतरणों में अंतर

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'''प्रसंग :''' इस कविता में कवि ने पतंग का रूपक बांधकर यह बताया है की सुजान ने पहले तो कवि को प्रेम के मार्ग में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया अपने आचरण से उसके मन में आशा बधाई, पर फिर अचानक उसके प्रति निष्ठुर हो उदासीन हो गई है और उसकी उदासीनता के कारण कवि की दशा अत्यंत दयनीय हो उठी है
 
'''व्याख्या :'' उस निष्ठुर सुजान ने पतंग उड़ाने जैसा निष्ठुर खेल मेरे साथ खेला है | है। पहले तो मेरे मन को आशा मैं बांधा, आश्वासन दिया, मिलने की अवधि निश्चित की और मेरा मन आशा की ऊंचाइयों में उड़ने लगा | लगा। मुझे सारा संसार तुच्छ लगने लगा |लगा। उत्साह, उमंग, और प्रेमातिरेक के कारण मैं बहुत आशावान और प्रसन्न था |था। पर अब उसने निष्ठा पूर्वक आचरण कर मेरी सारी आशाओं को धूल में मिला द लिया है| है। उसके लिए यह कीड़ा भले ही हो, पर इससे मेरे प्राण तो संकट में पड़ गए हैं | हैं। उसका यह मजाक पड़ाबड़ा कठोर है | है। सुजान नेमैं प्रेम की डोर ढीलीढ़ीली छोडीछोड़ी, मिलन की अवधि बढ़तीबढ़ातीं गई, आशा देती रही और मेरे मन आशा के आकाश में फूला फूला विचरण करता रहा। उसने आशा बँधा कर पता नहीं, आप कठोर आचरण अपना लिया है, जिसके परिणाम स्वरुप वह मेरे मन को और मुझे अपनी ओर आने का अवसर नहीं देते और मैं उसके दर्शन नहीं कर पाता, स्पर्श सुख से भी वंचित हूं। अपने इस दुख को, उसके कठोर व्यवहार से उत्पन्न वेदना को किससे कहूं, निर्मोही तक अपनी वेदना का संदेश कैसे पहुंचा पहुंचाऊं ? आश्चर्य तो यह है कि मेरा मन रूपी पतंग उसके हाथों में है, अर्थात मैं उसके वशीभूत हूं, पर वह प्रेम की डोर को खींच उसे अपने पास नहीं आने देती। फल स्वरुप मेरा मन रूपी पतंग विरह रूपी वायु के झोंकों में हिचकोले खाता रहता है, नेत्रों से निकले आंसू के अविरल प्रभाव में भीगता रहता है पर फिर भी आशा के आकाश में उड़ता रहता है। कभी का प्रेम मग्न हृदय वियोग कष्ट सहते और आंसू बहाते हुए भी सुजान का प्रेम, उससे मिलने की आशा त्याग नहीं पाता और उसके चारों ओर मंडराता रहता है