"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १५६:
 
'''जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ ||'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा.
 
 
'''व्याख्या-''' रहीम जी कहते हैं कि जैसे आंसू आंखों से निकल कर सीधे की पीड़ा को व्यक्त कर देते हैं ठीक उसी प्रकार जिसे आप अपने घर से निकालोगे तो वह भी घर के रहस्य को सभी से जाकर बता देगा जैसे रावण ने विभीषण को घर से निकाला था तो फिर भीषण ने राम से रावण के सारे रहस्य को बता दिया |