"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १७३:
'''ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांकें तीन ॥'''
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
'''प्रसंग-''' रहीम दास जी कहते हैं कि व्यक्ति को समझकर और परख कर ही उसे प्रेम करना चाहिए | नहीं तो बाद में वह बहुत दुख देता है |
'''व्याख्या-''' रहीम दास जी कहते हैं कि छली कपटी व्यक्ति की तरह प्रेम नहीं करना चाहिए जो ऊपर से अच्छे दिखते हैं और अंदर से उनके दिल विभाजित होते हैं अर्थात कुछ और होता है जैसे खीरा ऊपर से सुंदर हरा भरा दिखाई देता है और अंदर से तीन भागों में बटा होता है
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