"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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'''विशेष-.'''
 
 
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'''व्याख्या-''' रहीम दास जी कहते हैं कि छली कपटी व्यक्ति की तरह प्रेम नहीं करना चाहिए जो ऊपर से अच्छे दिखते हैं और अंदर से उनके दिल विभाजित होते हैं अर्थात कुछ और होता है जैसे खीरा ऊपर से सुंदर हरा भरा दिखाई देता है और अंदर से तीन भागों में बटा होता है | प्रेम में कपट नही होना चाहिये।वह बाहर भीतर से एक समान पवित्र और निर्मल होना चाहिये।केवल उपर से दिल मिलने को सच्चा प्रेम नही कहते।
 
'''विशेष-.'''