"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १९०:
'''बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।'''
'''प्रसंग-''' रहीम दास जी बताते हैं कि प्रेम की राह कितनी कठिन होती है केवल निश्छल ब्यक्ति हीं प्रेम में सफल हो पाते हैं
'''व्याख्या-''' रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का रास्ता अत्यंत फिसलन भरा है और हो सकता है जिस में चलने से चींटी के भी पांव फिसलते है तो लोग उसमें बैल लादकर ले जाना चाहते हैं अर्थात धोखे और चालाकी के साथ चलना चाहते हैं| जिसमे सच्चाई है संयम एवं एकाग्रता है वहीं इस मार्ग से जा सकता है
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