"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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'''व्याख्या-''' रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का रास्ता अत्यंत फिसलन भरा है और हो सकता है जिस में चलने से चींटी के भी पांव फिसलते है तो लोग उसमें बैल लादकर ले जाना चाहते हैं अर्थात धोखे और चालाकी के साथ चलना चाहते हैं| जिसमे सच्चाई है संयम एवं एकाग्रता है वहीं इस मार्ग से जा सकता है
 
 
'''विशेष-.'''
 
 
'''१२''' '''रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये।'''
 
'''टूटे से फिर ना जुटे जुटे गाॅठ परि जाये।।'''