"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ३८:
'''३-''' '''जो रहीम दीपक दसा,तिय राखत पट ओट।'''
'''समय परे ते होत है,याही पट की चोट।।'''
पंक्ति ५७:
'''४-''' '''पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।'''
'''अब दादुर वक्त भए, हमको पूछे कौन।।'''
पंक्ति ७८:
'''५-''' '''प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब काउ निबहत नाहि'''
'''रहिमन’ मैन-तुरंग चह़ि, चलिबो पावक माहि'''
पंक्ति ९६:
'''६-''' '''यह ‘रहीम’ निज संग लै, जनमत जगत् न कोय ।'''
'''बैर, प्रीति, अभ्यास, जस होत होत ही होय ॥'''
पंक्ति ११३:
'''७-''' '''यह ‘रहीम’ माने नहीं , दिल से नवा न होय ।'''
'''चीता, चोर, कमान के, नवे ते अवगुन होय ॥'''
पंक्ति १३१:
'''८-''' '''रहिमन अति न कीजिए, गहि रहिए निज कानि।'''
'''सैंजन अति फूलै तऊ, डार पात की हानि॥'''
पंक्ति १५३:
'''९-''' '''रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,'''
'''जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ ||'''
पंक्ति १७०:
'''१०-''' '''‘रहिमन’ प्रीति न कीजिए , जस खीरा ने कीन ।'''
'''ऊपर से तो दिल मिला, भीतर फांकें तीन ॥'''
पंक्ति १८७:
'''११-''' '''रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल।'''
'''बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।।'''
पंक्ति २०६:
'''१२-''' '''रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये।'''
'''टूटे से फिर ना जुटे जुटे गाॅठ परि जाये।।'''
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