"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/रहीम": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति २०९:
 
'''टूटे से फिर ना जुटे जुटे गाॅठ परि जाये।।'''
 
 
'''संदर्भ-''' रीतिकालीन नीतिश्रेष्ठ कवि रहीमदास की दोहावली पुस्तक के नीति के दोहे से अवतरित है।
 
 
'''प्रसंग-''' रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का रिश्ता अत्यंत नाजुक डोर से बँधा होता है उसको कभी तोड़ना नहीं चाहिए
 
 
'''व्याख्या-''' रहीम दास कहते है प्रेम के संबंध को सावधानी से निबाहना पड़ता है । थोड़ी सी चूक से यह संबंध टूट जाता है । टूटने से यह फिर नहीं जुड़ता है और जुड़ने पर भी एक कसक रह जाती है।