"व्‍यापारिक घरानों की सामाजिक जिम्‍मेदारी": अवतरणों में अंतर

''''लेखक - मनीष देसाई * ::'''निदेशक (मीडिया व संचार) पसूका, मु...' के साथ नया पन्ना बनाया
 
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इन उदाहरणों से एक बात तो स्‍पष्‍ट है कि भले ही कम संख्‍या में हों लेकिन देश में ऐसी कंपनियां अवश्‍य हैं जो अपनी सामाजिक जिम्‍मेदारी या सीएसआर का निर्वहन करती हैं। ये कंपनियां जहां स्‍थित हैं वहां के समुदाय के विकास कार्यो में संलग्‍न हैं। टाटा कंपनी ने ऐसा ही उदाहरण पेश करते हुए जमशेदपुर में अपने कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्‍यों के लिए शिक्षा एवं पूर्ण स्‍वास्‍थ्‍य की दिशा में काफी काम किया है।
 
भारत के कॉर्पोरेट जगत के लिए वर्ष 2015 विशेष महत्व रखता है। इस वर्ष पहली बार भारत की बड़ी कंपनियां ने सामाजिक क्षेत्र में किए गए खर्चों का ब्यौरा प्रस्तुत किया। वस्तुतः [http://imlee.in/2020/05/04/csr-corporate-social-responsibility/‎ (opens in a new tab) 1 अप्रैल 2014 को भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया जि]सने कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी को विधिक रूप से लागू किया।
 
इस सबके बावजूद भारतीय माहौल में सीएसआर को बहुत कम तरजीह दी जाती है। अगर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम की नवरत्‍न एवं मिनीरत्‍न कंपनियों और प्रसिद्ध बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों तथा मुठ्ठी भर भारतीय कंपनियों को छोड़ दिया जाये तो अन्‍य कंपनियों में सीएसआर को लेकर एक भ्रम बना हुआ है। सामान्‍य रूप से इसे धर्मदान ही कहा जाता है। सामान्‍य रूप से कहें तो सीएसआर को कंपनियां खुद के लिए बोझ समझती हैं न कि उनके व्‍यापार का हिस्‍सा, इसलिए ही उनका रवैया संरक्षण परक और महज चेक बुक तक ही सिमटा हुआ है।