"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/भूषण": अवतरणों में अंतर

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'''विशेष:-'''
 
 
'''उद्वत अपार तुअ दुंदभी-धुकार-पाथ लंघे पारावार बृंद बैरी बाल्कन के।'''
 
'''तेरे चतुरंग के तुरंगनि के रँगे-रज साथ ही उड़न रजपुंज है परन के।'''
 
'''दच्छिण के नाथ सिवराज तेरे हाथ चढ़ै धनुष के साथ गढ़-कोट दुरजन के।'''
 
'''भूषण असीसै तोहिं करत कसीसैं पुनि बाननिके साथ छूटे प्रान तुरकन के।'''