"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/भूषण": अवतरणों में अंतर
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'''व्याख्या :''' कवि कहते हैं कि- सरजाउपाधि से विभूषित अत्यन्त श्रेष्ठ एवं वीर शिवाजी अपनी चतुरंगिणी सेना (पैदल, घोड़े और रथ) को सजाकर तथा अपने अंग-अंग में उत्सह का संचार करके युद्ध जीतने के लिए जा रहे हैं। भूषण कहते हैं कि उस समय नगाड़ों का तेज स्वर हो रहा था। हाथियों की कनपटी से बहने वाला मद (हाथी जब उन्मत्त होता है तो उसके कान से एक तरल स्राव होता है जिसे उसका मद कहते हैं) नदी-नालों की तरह बह रहा था। अर्थात् शिवाजी की सेना में मदमत्त हाथियों की विशाल संख्या थी और युद्ध के लिए उत्तेजित होने के कारण हाथियों की कनपटी से अत्यधिक मद गिर रहा था जो नदी-नालों की तरह बह रहा था। शिवाजी की विशाल सेना के चारों ओर फैल जाने के कारण संसार की गली गली में खलबली मच गई। हाथियों की धक्कामुक्की से पहाड़ भी उखड़ रहे थे। विशाल सेना के चलने से बहुत अधिक धूल उड़ रही थी। अधिक धूल उड़ने के कारण आकाश में चमकता हुआ सूर्य तारे के समान लग रहा था और समुद्र इस प्रकार हिल रहा था जैसे थाली में रखा हुआ पारा हिलता है
'''विशेष:-''' शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रस्थान का अत्यन्त मनोहारी चित्रण किया है।
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