"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/भूषण": अवतरणों में अंतर

No edit summary
No edit summary
पंक्ति ८६:
 
'''विशेष:-''' शिवाजी की चतुरंगिणी सेना के प्रस्थान का अत्यन्त मनोहारी चित्रण किया है।
 
 
 
'''वेद राखे विदित पुरान परसिद्ध राखे,'''
Line १०७ ⟶ १०९:
 
 
'''प्रसंग :''' भूषण ने इस पद के माध्यम से शिवाजी की धर्म निष्ठा बताइए है कि उन्होंने किस प्रकार भारतीय धर्म की रक्षा कि है|
'''प्रसंग :'''
 
 
 
 
 
 
'''व्याख्या :''' कवि भूषण ने शिवाजी को धर्म-रक्षक वीर के रूप में चित्रित किया है। जब औरंगजेब सम्पूर्ण भारत में देवस्थानों को नष्ट कर रहा था, वेद-पुराणों को जला रहा था, हिन्दुओं की चोटी कटवा रहा था, ब्राह्मणों के जनेऊ उतरवा रहा था और उनकी मालाओं को तुड़वा रहा था, तब शिवाजी महाराज ने ही मुगलों को मरोड़ कर और शत्रुओं को नष्ट कर सुप्रसिद्ध वेद-पुराणों की रक्षा की, लोगों को राम नाम लेने की स्वतंत्रता प्रदान की, हिन्दुओं की चोटी रखी, सिपाहियों को अपने यहाँ रखकर उनको रोटी दी, ब्राह्मणों के कंधे पर जनेऊ, गले में माला रखी। देवस्थानों पर देवताओं की रक्षा की और स्वधर्म की घर-घर में रक्षा की।
 
 
'''विशेष:-'''
 
 
पंक्ति १३९:
 
 
'''प्रसंग :''' —इसइस कवित्त में मुगलदरबार में आयोजित शिवाजी की औरंगजेब से भेंट का वर्णन है। शिवाजी को छह हजारी मनसबदारों की पंक्ति में खड़ा किया गया था। इस अपमान को शिवाजी सहन न कर सके और भरे दरबार में क्रोधावेश में बड़बड़ाने लगे। उसी दृश्य का चित्रण इस पद में प्रस्तुत किया गया है।