"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/भूषण": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १८४:
'''देस दहपट्टि आयो आगरे दिली के मेले बरगी बहरि' चारु दल जिमि देवा को।
'''भूपन भनत छत्रसाल, छितिपाल मनि ताकेर ते कियो बिहाल जंगजीति लेवा
खंड खंड सोर यों अखंड महि मंडल में मंडो तें धुंदेल खंड मंडल महेवा को।▼
दक्खिन के नाथ को कटक रोक्यो महावाहु ज्यों सहसवाहु नै प्रबाह रोक्यो नेवा को ॥४॥▼
▲'''खंड खंड सोर यों अखंड महि मंडल में मंडो तें धुंदेल खंड मंडल महेवा को।'''
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