"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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'''जग में होत हंसाय, चित्त चित्त में चैन न पावै।'''
 
'''खान पान सन्मान, राग रंग मनहिं न भावै॥'''