"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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'''कह 'गिरिधर कविराय, दु:ख कछु टरत न टारे।'''
 
'''खटकत है जिय मांहि, कियो जो बिना बिचारे॥'''