"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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'''संदर्भ :-''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के नीति-विषयक कवि भूषण द्वारा रचित गिरिधर कविराय से संकलित किया गया है।
 
 
'''प्रसंग :-''' इस पद के माध्यम से गिरधर कविराय मनुष्य के चिंतित मन कि अवस्था को दर्शाते हैं
 
 
'''व्याख्या :-''' चिंतन के विषय में उनका कथन है कि चिंता शरीर की वह ज्वाला है जो मानव शरीर को भीतर ही भीतर जलाती रहती है | ऊपर से मनुष्य समान दिखता है लेकिन अंदर धुआं उठता रहता है| जैसे भट्टी में बर्तन पकता है| चिंता में अंदर ही अंदर रक्त, माँस जल जाता है और ऊपर हाड का पिंजर ही नजर आता है | गिरिधर कहते हैं कि ऐसे मनुष्य कैसे जीवन जी सकते हैं जिन्हें चिंता लगी रहती है |
 
 
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'''संदर्भ :-''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के नीति-विषयक कवि भूषण द्वारा रचित गिरिधर कविराय से संकलित किया गया है।
 
 
'''प्रसंग :-''' इस पद के माध्यम से कवि बताते हैं कि हमें कभी भी किसी से बैर नहीं करना चाहिए
 
 
'''व्याख्या :-''' गिरधर कविराय जी कहते हैं कि हमें अपने जीवन में कुछ लोगो से कभी बैर नही करना चाहिए | इनकी संख्या 13 है| इसमें गुरु, पंडित, कवि, यार, बेटा, बनिता अर्थात स्त्री, पाँवरिया, यज्ञ करने वाला, राज मंत्री, विप्र, पड़ोसी, वैद, रसोइयाँ आदि| इन लोगों से वैर करने से स्वयं ही हानि होती है
 
 
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'''संदर्भ :-''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के नीति-विषयक कवि भूषण द्वारा रचित गिरिधर कविराय से संकलित किया गया है।
 
 
'''प्रसंग :-''' इस पद के माध्यम से मतलबी संसार की रीति का वर्णन करते हुए कवि गिरिधर कविराय बताते हैं कि संसार कितना मतलबी हो गया है|
 
 
'''व्याख्या :-''' संसार में सभी लोग स्वार्थ और मतलब से बात करते हैं| जब तक हमारे पास पैसा है जब तक सभी दोस्त बने रहते हैं हमारे साथ साथ चलते हैं परंतु जब पैसा ना रहे तो मुंह फेर लेते हैं| सीधे मुंह बात भी नहीं करते | गिरधर कविराय कहते हैं कि संसार की यही रीति है| बिना मतलब के कोई विरला ही दोस्ती निभाता है | (यहां '''विरला''' का अर्थ अनेक लोगों में से कोई एक है)
 
 
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'''संदर्भ :-''' यह पद हिंदी साहित्य के रीतिकाल के नीति-विषयक कवि भूषण द्वारा रचित गिरिधर कविराय से संकलित किया गया है।
 
 
'''प्रसंग :-''' कवि गिरधर का कथन है कि हमें कोई भी काम बिना सोचे- विचार के नहीं करना चाहिए|