"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १२०:
 
'''दुर्जन हंसे न कोइ, चित्त मैं खता न पावै॥'''
 
'''कह 'गिरिधर कविराय यहै करु मन परतीती।'''