"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १७१:
'''तूही ब्रह्मा तूहि शक्ति है, तूहि सेक, तूहि सेव
 
'''तूही सेवक, तूही सेव, तूही इंदर, तूही सेसा'''
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