"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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'''तूही सेवक, तूही सेव, तूही इंदर, तूही सेसा'''
 
'''तूही होय सब रूप, तू किया सबमें परवेसा'''