"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर

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'''तूही होय सब रूप, तू किया सबमें परवेसा'''
 
'''कह गि रिधरक कविराय, पुरुष तूही तूही बाम'''
 
'''तूही लछमन, तूही भरत, शत्रुहन, सीताराम'''