"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति १७४:
'''तूही होय सब रूप, तू किया सबमें परवेसा'''
'''कह गि रिधरक कविराय, पुरुष तूही तूही बाम'''
'''तूही लछमन, तूही भरत, शत्रुहन, सीताराम'''
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