"हिंदी कविता (रीतिकालीन) सहायिका/गिरिधर कविराय": अवतरणों में अंतर
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'''व्याख्या :-''' गिरधर कहते हैं कि तुम्हारे भीतर ही यह सारा जग समाहित है तू ही कृष्ण, राम, देवों के देव, ब्रह्मा, शक्ति स्वामी, सेवक पुरुष, स्त्री तुम ही लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न सीता राम हो| सारा जगत तुम्हारा ही प्रतिरूप है| अनेक रूपों में है ईश्वर तुम्हारी ही छवि विद्यमान है|
'''विशेष :-'''
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