"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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मैथिलीशरण गुप्त ने जब हिंदी की सेवा की उन दिनों ब्रज बोली का वर्चस्व था। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के लिए देशभर में बड़ा आंदोलन चला रहे थे। आचार्य, नौजवान मैथिलीशरण गुप्त के साहित्यिक गुरु बन गए। देखते ही देखते वे अपनी हिंदी की सेवा के कारण देश के ददा के रूप में लोकप्रिय हो गए 12 वर्ष तक भारत की संसद में उनकी कविताएं सांसदों को मंत्र मुक्त करती रही।
 
1905 से 1921 तक मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं लगातार सरस्वती के पन्नों में जगह पाती रही। उनकी पहली कविता हेमंत से लेकर जयद्रथ वध, भारत भारती, साकेत जैसी अनेक मशहूर रचनाएं किताब की शक्ल लेने से पहले सरस्वती में छप चुकी थीथी। साकेत की प्रस्तावना में मैथिलीशरण ने सरस्वती और महावीर प्रसाद द्विवेदी से अपने रिश्ते के बारे में लिखा।
 
'''<Poem>करते तुलसीदास भी कैसे मानस का नाद?'''
'''महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद</poem>