"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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1904 और 1905 के बीच उनकी रचनाएं कोलकाता की '''वैश्योपकारक''', बंबई की '''वेंकटेश्वर''' और कन्नौज की '''मोहिनी''' पत्रिका में प्रकाशित होती रही। उन्हीं दिनों हिंदी के पूर्वथा '''पं महावीर प्रसाद द्विवेदी''' झांसी रेलवे में काम करते थे और वही से '''सरस्वती पत्रिका''' का संपादन करते थे। सरस्वती इलाहाबाद से प्रकाशित होती थी और उस दौर की हिंदी में सबसे अच्छी पत्रिका थी। सरस्वती में छपना किसी भी लेखक के लिए सम्मान की बात थी। एक दिन मैथिलीशरण हिम्मत कर महावीर प्रसाद जी से मिलने गए। कौन जानता था की यह मुलाकात जिंदगी बदल देंगी। दोनों के बीच दिलचस्पी संवाद हुआ जो इस प्रकार था।
 
'''मैथिलीशरण:-''' मेरा नाम मैथिलीशरण है मैं कविता लिखता हूं और मैं चाहता हूं कि मेरी कविता सरस्वती मैंमें प्रकाशप्रकाशित हो
 
'''द्विवेदी जी:-''' बहुत से लोग चाहते हैं कि उनकी रचनाएं सरस्वती छपे। लेकिन सबको मौका नहीं मिलता... और फिर आप तो ब्रज भाषा में लिखते हैं। सरस्वती खड़ी बोली की पत्रिका है। मैं भला कैसे छाप सकता हूं?
 
'''मैथिलीशरण:-''' अगर आप मुझे आश्वासन दे तो मैं खड़ी बोली मैंमें भी कविता लिख सकता हूं
 
'''द्विवेदी जी:-''' ठीक है तो पहले आप हमें कोई कविता भेजिए तो सही। अगर छपने लायक होगी तो हम जरुर प्रकाशित करेंगे।