"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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रंग में भंग के बाद आई '''जयद्रथ-वध'''। 1905 में बंगाल विभाजन का गुस्सा जयद्रथ वध के जरिए निकला
 
<Poem>वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय जानकी जीवन’ कहो,
फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो।
दु:ख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो,
होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।।
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है;
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है।</poem>