"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति ५८:
भगवान् ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।
हो भद्रभावोद्भाविनी वह भारती हे भवगते।
सीतापते! सीतापते !! गीतामते! गीतामते !!
हाँ, लेखनी ! हृत्पत्र पर लिखनी तुझे है यह कथा,
दृक्कालिमा में डूबकर तैयार होकर सर्वथा।
स्वच्छन्दता से कर तुझे करने पड़ें प्रस्ताव जो,
जग जायें तेरी नोंक से सोये हुए हों भाव जो</poem>
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