"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर
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इसी बीच प्रेस और साहित्य सदन के नाम से चिरगांव में प्रिंटिंग प्रेस और प्रकाशन के कारोबार में उतर आए। 1914 में शकुंतला और इसके 2 साल बाद किसान नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुए। किसान में भारतीय किसानों की दुर्दशा और उनकी परेशानियों का चित्रण अद्भुत है
<Poem>हेमन्त में बहुदा घनों से पूर्ण रहता व्योम है
पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है
हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ
खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ
आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में</poem>
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