"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति १०:
'''मैथिलीशरण:-''' मेरा नाम मैथिलीशरण है मैं कविता लिखता हूं और मैं चाहता हूं कि मेरी कविता सरस्वती में प्रकाशित हो
 
'''द्विवेदी जी:-''' बहुत से लोग चाहते हैं कि उनकी रचनाएं सरस्वती में छपे। लेकिन सबको मौका नहीं मिलता... और फिर आप तो ब्रज भाषा में लिखते हैं। सरस्वती खड़ी बोली की पत्रिका है। मैं भला कैसे छाप सकता हूं?
 
'''मैथिलीशरण:-''' अगर आप मुझे आश्वासन दे तो मैं खड़ी बोली में भी कविता लिख सकता हूं
पंक्ति ७०:
जो आज उत्सव मग्र है, कल शोक से रोता वही</poem>
 
राष्ट्रीय आंदोलनों, शिक्षा संस्थानों और प्रातः कालीन प्रार्थनाओं में भारत भारती गाई जाती थी। गांव गांव में अनपढ़ लोग भी सुन सुनकर याद कर चुके थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के बाद जब नागपुर में झंडा सत्याग्रह हुआ तो सभी सत्याग्रही जुलूस में भारत भारती के गीत गाते हुए सत्याग्रह करते। गोरी सरकार ने भारत भारती पर पाबंदी लगा दी। सारी प्रतियां जब कर ली गई। जिस समय भारत भारती को हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा गुनगुना रहा था उन्हीं दिनों गुप्त जी की जाति जिंदगी में तूफान आया दूसरी पत्नी भी चलबसी। गुप्तागुप्त जी सदमे में थे। दो पत्नियां जिंदगी से जा चुकी थी कोई बच्चा भी नहीं था और माता-पिता तो पहले ही विदा ले चुके थे। मन उचाट था और शुभचिंतकों ने एक बार फिर मनाया और 1917 में सरजू देवी के साथ तीसरा विवाह हुआ। इस शादी से भी कई संताने हुई परंतु वो जिंदा नहीं रही। ढलती उम्र में एक बेटा हुआ नाम रखा गया उर्मिलशरण।
 
इसी बीच प्रेस और साहित्य सदन के नाम से चिरगांव में प्रिंटिंग प्रेस और प्रकाशन के कारोबार में उतर आए। 1914 में शकुंतला और इसके 2 साल बाद किसान नाम से कविता संग्रह प्रकाशित हुए। किसान में भारतीय किसानों की दुर्दशा और उनकी परेशानियों का चित्रण अद्भुत है