"राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति ८१:
अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में</poem>
 
गुप्त जी की रचनाएं सरस्वती के अलावा इंदु, प्रताप और प्रभा जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में छप रही थी। लोग उनकी एक एक कविता के दीवाने थे। इसी बीच उन्होंने एक प्रयोग और किया अहिंदीभाषी साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी अनुवाद करने लगे ये अनुवाद उन्होंने मधुप के नाम से किया। इसी दौरान उन्होंने तीन नाटक तिलोत्तमा, चंद्रहार, अनघ लिखे यह नाटक बहुत पसंद किए गए।